कहां चले गये हो तुम
जहां में हमको छोड़ के
कहां कभी मिलोगे तुम
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आज कहने जो चला हूं
कह चुका पहले भी हूं
कर में अपने है
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उदासी है कैसी जो छाई हुई है
यहां रूह हर एक सताई हुई है
नही जलते दीपक यहां दिल है जलते
ये बुझते हुए मन नही अब संवरते
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प्रथम रूप में द्वेष रहित था
क्लेश रहित था मन मेरा
ज्यों-ज्यों वर्ष बीत रहे थे
बदल रहा था मन मेरा
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समय!
तुम्हारे साथ साथ चलता हूं मैं
तुम रुकते नही तुम थकते नही
तुम कहीं कभी भी थमते नही
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निशब्द हुआ
मै परख रहा था
शांति-भाव की उत्तमता
भूली-बिसरी यादें लेकर
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इतिहास कहे कुछ या न सही
ये दुनिया वाले कह देंगें
जिस पार अगर मधु है तुम हो
उस पार का आलम क्या होगा
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हां, मैने प्रण कर रखा है ।
धूल धूसरित हो जाने को
तब तक मैं तैयार नही हूं
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सरहद के पार
एक आवाज आती है
मीठी मधुर तान कोई बुलाती है
बूढ़ों की बच्चों की रंगो की सपनों की
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पिता तुम्हारे सिने जगत में
और पितामह कवियों में
नाम तुम्हारा भी हो जग में
हम करें कामना मंगल मय
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