बेटी है तो कल है Poem by Alok Agarwal

बेटी है तो कल है

काश गर्भाशय मे ही बोलने की आज़ादी होती, तब बेटी ज़ोर-ज़ोर से ये कहती की उसे जीना है| उसके माँ-बाप शायद तब भी उसे अनदेखा कर देते| हमारे देश की ये विडम्बना है की जिस देश मे नारी की शक्ति रूप मे उपासना की जाती है, आज उसी देश मे नारी को विलुप्ति की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया गया है|

इतिहास पर अगर एक नज़र दौड़ाएँ तो ये नज़र आता है की शुरुवात से ही हालत ऐसे नहीं थे| मानव सभ्यता के आरंभ मे एक महिला का दर्जा पुरुष के मुक़ाबले ऊंचा था| मानव उपासना भी स्त्री की करता था| समय के साथ भगवान का पुरुष-करण किया गया और पित्र-सत्ता को बढ़ावा दिया गया| यही वाकया हर धर्मा, हर समाज मे हुआ| स्त्री का दर्जा धीरे-धीरे कम होने लगा और 18वीं सदी तक ये सबसे निचले स्तर पर जा चुका था| मानव ने अपने आप को रूढ़िवादी घिसी-पिटी जंजीरों में बांध लिया, जहां तर्क करने की इच्छा को खतम कर दिया गया| भारतिये समाज मे धर्म गोस्ठी का बहुत महत्व था| यह एक चर्चा करने का विशिष्ट आयोजन था| पूरे देश के हर कोने-कोने से हर क्षेत्र के जानकार इसमे सम्मिलित होते थे और हर एक विषय, चाहे वो कितना भी संवेदनशील हो, उस पर चर्चा करते थे| यह एक आगे बढ्ने वाले समाज का सूचक है| धीरे-धीरे इन आयोजन की कमी हो गयी, और हमारी विचारधारा संकीर्ण होती गयी| नियम हमारे समाज को दिशा देते है, जिसका हमे पालन करना चाहिए – लेकिन इसकी बंदिश मे बांधना सही नहीं है| समय के साथ-साथ समाज बदलता है और इस समाज को नियम भी बदलते रहने चाहिए|

वैश्विक समाज मे स्त्री की दशा मे सुधार 19वी सदी के शुरुवात से आरंभ हो गया था| ये सुधार पश्चिम के देशों से शुरू हुआ| भारत मे इस सुधार की शुरुवात 1990 के बाद से हुई| हालांकि ये सुधार अभी हर राज्य और और हर ज़िले मे नहीं है| इसमे अभी कई विषमताएँ है| हमारी यह आम धारणा है की कन्या भ्रूण हत्या जैसे कुकर्म गरीब या माध्यम वर्ग के परिवारों मे होते है, पर ये गलत है| इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की लिंग अनुपात भारत के सबसे सम्पन्न राज्यों पंजाब और हरियाणा मे सबसे कम और चिंतित करने वाले स्तर पर है|

भारतिये बेटी को हमारा समाज जन्म से पहले ही परजीवी के रूप मे देखता है| उसको पल-पल ये एहसास दिलाया जाता है की वो पुरुष से कम है| खान-पान मे पहले बेटे को और फिर बेटी को, शिक्षा मे पहले बेटे को फिर बेटी को...इत्यादि| विवाह के समय दहेज प्रथा, अधेड़ उम्र के व्यक्ति से विवाह, बाल-विवाह, घरेलू हिंसा, हर जगह नारी को ही झुकना पड़ता है| अगर किसी वक्त नारी की आबरू के साथ कोई खिलवाड़ करता है, तो इसका दोष भी समाज नारी को ही देता है| हमारे नेता इन घटना का दोष चाउमीन, मोबाइल फोन, काम कपड़ों ये किसी भी मन-गढ़त चीज़ को दे देते हैं| अगर कम कपड़ों से बलात्कार होता तो कपड़ों के आविष्कार से पहले का ज़माना दिल-दहला देने वाला होता|

हमारे अंदर एक खास बात है, की हम अपने हर गुनाह को ठीकरा सरकार पर थोप देते हैं| अरे मियां! जब गंदगी हम फैला रहे हैं, तो साफ भी हमे खुद ही करना पड़ेगा| अब सरकार हर जगह लोटा लेकेर हमारे पीछे तो नही दौड़ेगी| सरकार हमने चुनी है कानून बनाने के लिए और लागू करवाने के लिए| सरकार कहती है हेलमेट पहनो, और हम नज़र-अंदाज़ कर देते हैं| सिर हमारा, जान हमारी, दुर्घटना घाटी तो मुआवजा सरकार दे| सरकार जो कर रही है, उसपर ध्यान न देकर; हम उसपर ध्यान देते हैं जो सरकार नहीं कर रही| भारत सरकार ने नारी शशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे दहेज प्रथा के खिलाफ कानून, घरेलू हिंसा के प्रति कानून, मातृत्व सहयोग योजना, धन-लक्ष्मी, बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ, इतयादी| अब ये हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है की हम अपनी सरकार का पूरा सहयोग दें और हमारे बस मे जो है वो करें| इस नेक कार्य की शुरुवात हमे अपने घर से करनी होगी| हमे अपनी बेटियों को हिम्मत देनी होगी और उनका समाज का सामना करने के लिए हौसला देना होगा| इसके साथ ही, हमे अपनी पुरुषवादी मानसिकता पर लगाम लगाना होगा| हमे अपने बेटों को महिलाओं की इज्ज़त करना सिखाना होगा| सफल और शशक्त व्यक्तित्व की बेटी ही मा-बाप के बुढ़ापे और समाज को संभाल सकती है|

नारी शब्द सुनते ही स्नेह शब्द अनायास ही मशतिष्क मे आ जाता है| माँ के स्नेह से पवित्र कुछ भी नहीं है| माँ का दुलार, बहन का प्यार, पत्नी का प्रेम – हर रूप मे नारी श्रद्धा की देवी है| जो अपने से पहले दूसरों को देखती हो वो नारी है| ढाई अक्षर प्रेम के, पढे जो पंडित होइए| और नारी तो इसका साक्षात प्रमाण है| अगर विश्व के हर देश मे राष्ट्रपति कि जगह राष्ट्रपत्नी होती तो हमे वैश्विक शांति कि आवश्यकता ही नहीं होती| वसुदेव कुटुंबकम को हम महसूस कर पाते| राम राज्य कि कल्पना अगर साकार करनी है, तो सीता को इज्ज़त देनी होगी| ये देश तभी आगे बढ़ सकता है, जब नारी को समान-अधिकार मिले|

बेटी है तो कल है, परसों है, और पूरा कलेंडर है|

Thursday, September 10, 2015
Topic(s) of this poem: love
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