गुरु-समीक्षा Poem by Mukul Kumawat

गुरु-समीक्षा

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गुरु से बढ़कर इस दुनिया में, न कोई दूजा होवे रे
जो गुरु को कुछ भी न समझे, वो रावण बन रोवे रे

प्रेम-क्रोध तो दो ही रूप है, दया-दृष्टि की महिमा अनूप है
मात-पिता है प्रेम के सागर, गुरु तो शिक्षा का स्तूप है

सत व कुमार्ग को दर्शाते, स्वयं की महिमा कभी न बतलाते
मार्ग भटकने पर समझाते, वही तो असल गुरु कहलाते

हम शिष्य है, गुरु तेरे हवाले, हाथ पकड़ कर चल लेंगे
तू रोकेगा, तू टोकेगा, तू समझाये समझ लेंगे

जो भूल-सूत को ध्यान न रखकर, जग हित भार को ढोवें रे
गुरु से बढ़कर इस दुनिया में, न दूजा कोई होवे रे

Friday, September 11, 2015
Topic(s) of this poem: teacher
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 11 September 2015

इस संसार में गुरु सबसे बड़ा गाइड है. गुरु की महिमा को समर्पित इस सुंदर कविता को PH पर शेयर करने के लिए धन्यवाद, मुकुल जी.

2 0 Reply
Mukul Kumawat 19 September 2015

बहुत बहुत धन्यवाद महोदय! !

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