यह नंबर मौजूद नहीं Poem by Mangalesh Dabral

यह नंबर मौजूद नहीं

दिस नंबर डज़ नॉट एग्ज़िस्ट
जहां भी जाता हूं जो भी फ़ोन मिलाता हूं
अकसर एक बेगानी सी आवाज़ सुनाई देती है
दिस नंबर डज़ नॉट एग्ज़िस्ट यह नंबर मौजूद नहीं है
कुछ समय पहले इस पर मिला करते थे बहुत से लोग
कहते आ जाओ हम तुम्हें पहचानते हैं
इस अंतरिक्ष में तुम्हारे लिए भी बना दी गयी है एक जगह

लेकिन अब वह नंबर मौजूद नहीं है वह कोई पहले का नंबर था
उन पुराने पतों पर बहुत कम लोग बचे हुए हैं
जहां आहट पाते ही दरवाज़े खुल जाते थे
अब घंटी बजाकर कुछ देर सहमे हुए बाहर खड़ा रहना पड़ता है
और आख़िरकार जब कोई प्रकट होता है
तो मुमकिन है उसका हुलिया बदला हुआ हो
या वह कह दे मैं वह नहीं हूँ जिससे तुम बात करते थे
यह वह नंबर नहीं है जिस पर तुम सुनाते थे अपनी तकलीफ़

जहां भी जाता हूं देखता हूं बदल गए हैं नंबर नक़्शे चेहरे
नाबदानों में पड़ी हुई मिलती हैं पुरानी डायरियां
उनके नाम धीरे-धीरे पानी में धुलते हुए
अब दूसरे नंबर मौजूद हैं पहले से कहीं ज़्यादा तार-बेतार
उन पर कुछ दूसरी तरह के वार्तालाप
महज़ व्यापार महज़ लेनदेन खरीद-फरोख्त की आवाजें लगातार अजनबी होती हुई
जहां भी जाता हूँ हताशा में कोई नंबर मिलाता हूं
उस आवाज़ के बारे में पूछता हूं जो कहती थी
दरवाज़े खुले हुए हैं तुम यहाँ रह सकते हो
चले आओ थोड़ी देर के लिए यों ही कभी भी इस अंतरिक्ष में.

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