मोहब्बत को समझना ना समझना एक जैसा है Poem by Lalit Kaira

मोहब्बत को समझना ना समझना एक जैसा है

Rating: 4.7

अजब आलम है जीना औ' मरना एक जैसा है
मोहब्बत को समझना ना समझना एक जैसा है

तबस्सुम पर मेरे कोई कहानी ना बना लेना
मरीजे इश्क का हँसना तड़पना एक जैसा है

तेरे साथ भी खुश था मैं तेरे बाद भी खुश हूँ
तेरा मिलना मिलकर के बिछड़ना एक जैसा है

बेफिकर है बेलौस है बंदा ये बेपरवाह
ललित से इश्क करना सर पटकना एक जैसा है

सारी खुदाई लोरियों पर माँ तेरी कुरबान
खुदा का गीत और माँ का तराना एक जैसा है

Monday, October 12, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Sanjeev 22 January 2018

Heart touching line brother

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Rajnish Manga 04 November 2017

इस खुबसूरत ग़ज़ल को पढ़ना जैसे ज़िन्दगी की तल्ख़ सच्चाइयों से रु-बी-रु होना है. इन पंक्तियों में एक अज़ीम शायर का अक्स नज़र आता है. धन्यवाद, मित्र.

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M Asim Nehal 12 October 2015

Alag alag aur Juda juda sab ek jaisa....Wah wah, ....10 Nimantran hai meri kavita padhne ka....Kya pata hum dono ki mauzu bhi ho ek jaisa....

1 0 Reply
Lalit Kaira 05 November 2015

Shukriya janab

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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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