आज अनयास ही किताबों के उलट फेर में
एक पुराना खत मिला कागज के ढेर में
फिर उसने कुरेद दीं कुछ पुरानी बातें
जो दफन थी यादें वक़्त के तह फेर में
आज चलूँ एक बार फिर उसी मोड़ पर
जहां करते थे इंतेजार तुम शाम-सबेर में
चाँद लेकर आई है चाँदनी मेरे आँगन में
रोशनी नही फैली बस मेरे मन अंधेर में
जो रहता है ऐतबार अब भी उसके वादों का
कब तक मैं बंधी रहूंगी इस उम्मीदें डोर में....
आपका यह आरंभिक प्रयास प्रशंसनीय है, मित्र. धन्यवाद व शुभकामनायें.
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Lovely.Nicely written.