सम्पूर्ण Poem by Ajay Srivastava

सम्पूर्ण

फूल से तुलना करू
तुम्हारा होना एक खूबसूरत एहसास
जो आस पास के वातावरण को सुगन्धित कर दे।
एक बेल से तुलना करू
सम्पूर्ण अंग में एक तरंग की तरह
प्यार को दिल से महसूस करा दे।
फल से तुलना करू
जो अपने ही प्रतिबिम्ब को प्रगट करे
साथ ही साथ गर्व की अनिभूति करा दे।
या फिर निर्मल जल से तुलना करू
जो जीवन और अस्तित्व की आवश्यकता हो
जिसके बिना रहना असंभव हो।
क्या उपमा दू किस्से तुलना करू
जो तुम्हे अपने आप में सम्पूर्ण होने की अनभूति दे।

सम्पूर्ण
Friday, November 6, 2015
Topic(s) of this poem: comforting
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Ajay Srivastava

Ajay Srivastava

new delhi
Close
Error Success