तुम Poem by Ajay Srivastava

तुम

Rating: 5.0

तुम हो तो हम है।
हमारे होने की पहचान हो तुम।
तुम हमारी शक्ति का प्रतिक हो।
तुम मोहकता की मूर्ति हो।
तुम गुणों का भंडार हो।
माना की अपवाद होते है।
पर कुछ अपवाद सचाई को नकार नहीं सकते
तुम हो तो हम है।
वो नादान है, न समझ है।
जो तुम्हे असक्षम समझते है।
ठीक वैसे ही
जैसे हर कोई अदरक का प्रभाव नहीं जानता ।
तुम हो तो हम है
जब बनाने वाला ही स्वय चकित और आसक्त है।
अपनी रचना पर
कोई क्यों न ईर्ष्यालु हो जाये
जब स्वय को शुन्य के पास पाये
और तुम्हें अनन्तता के पास पाये
तुम हो तो हम है।

Saturday, November 7, 2015
Topic(s) of this poem: women empowerment
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 07 November 2015

Wonderfully drafted poem shared on women empowerment. Wise sharing.10

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