मेरी टाँग! ! ! ! ! Poem by M. Asim Nehal

मेरी टाँग! ! ! ! !

Rating: 5.0

मेरे औसत कद पर न जाना
शायद ये आपको गुमराह कर दे

लेकिन मैं और वो सभी जो इन टांगों
से वाक़िफ़ हैं भली भाति समझ जायेंगे
ऐसा इसलिए कि ये मेरी टाँग है और
जो एक बार उलझ गया उसका ऊपरवाला हाफ़िज़ है

मुझे याद नहीं पड़ता के ये कब, कहाँ और कैसे शुरू हुआ
पर हाँ शायद ही कोई एसा मसला हो जो
इन टांगों से बच कर गुज़रा होग
कोई बात हो और मेरी टांगे उसमे न लगे ये हो नहीं सकता....

हाँ पहले पहल झिझक सी होती थी पर अब
तो जैसे आदत सी बन गयी है बेचारे लोग
तरस आता है उनपर जिनका इन टांगों
से वास्ता पड़ा पर मैं भी क्या कर सकता हूँ, मजबूर हूँ

मेरी चिर परिचित तो खैर इससे वाक़िफ़ हैं
कहीं आप ये तो नहीं समझ रहे हैं कि
मेरी टाँग में अमिताभ कि ताक़त है या
फिर मेराडोना का जादू है ना ना ना....

एक बात तय है कि इसका और समस्याओं का
चुम्बकीय नाता है जहाँ एक दूसरे के आमने सामने
हुए कमबख्त उलझ ही जाते हैं और मेरी परेशानियों
कि कुछ ना पूछिये कई बार पिटते पिटते बचा हूँ

इनसे एक बार तंग आकर मैंने इन्हे कटवाने का फैसला
भी लिया, परिणाम आश्चर्य जनक रहा
ऑपरेशन कि तारीक़ पर ये नामाकूल डॉक्टर और
नर्सों से जा उलझे और मैं इन्हे लेकर जैसे तैसे भाग खड़ा हुआ

फिर सोचा कि इन्हे गाडी के नीचे रख कटवा ही आऊं
या फिर कुछ और कर डालूँ लेकिन हर बार..............

अब मैं थक सा गया हूँ सोचता हूँ
कि इसे ऐसी जगह ले जाऊं जहाँ कोई समस्याएं ही ना हो
अरे क्या आप जानते हैं ऐसी जगह? ? ? ?

अगर हाँ जानते हैं तो मेरी टांगों से बचकर
मुझसे संपर्क करे - उचित ईनाम दिया जायेगा...धन्यवाद

Tuesday, December 1, 2015
Topic(s) of this poem: humorous,satire
COMMENTS OF THE POEM
Sharad Bhatia 11 September 2020

बेहतरीन हास्यास्पद रचना मेरी टांगों से मत उलझना 100++

0 0 Reply
Akhtar Jawad 15 November 2016

Kutch log her muamle mein tang adane ke aadi hote hain. Ye tanzia aur mazahia nazm ayse logon ki ek zabardast tasveer hay.

2 0 Reply
T Rajan Evol 01 December 2015

बहुत बढ़िया, आपने टांगों के जरिये से एक सटीक बात सरलता से कह दी....हम सब कभी न कभी कहीं न कहीं इसका शिकार हो चुके हैं और भली भांति जानते हैं, आसिमजी आपकी कविता का जवाब नहीं

4 0 Reply
Rajnish Manga 01 December 2015

बहुत बढ़िया. नाक से बचे तो टांग में उलझे. यह तो वही हुआ कि आसमान से गिरे खजूर पे अटके. बहरहाल, जहां भी अटके, कभी न खटके. बहुत खूब. इस कविता में हास्य रस का भरपूर आनंद भरा है. धन्यवाद, मित्र.

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