' मेरा भारत ' Poem by Ajay Srivastava

' मेरा भारत '

Rating: 5.0

दिल से दिल को मिलाओ।
नफरत को प्यार से मिटाओ।
निजी स्वार्थ को हटाओ।
सभी के हित के लिय कदम बढ़ाओ।

प्रत्येक व्यक्ति को
प्रत्येक गलत को, गलत कहना सिखाओ।

ज्यादा दिमाग मत लगाओ।
अहम को दूर भगाओ।
फिर शांति का आनंद उठाओ।
और प्यार को पा जाओ।

यही तो चाहत है हम सब की।
जब विचार से विचार व् दिशा से दिशा मिलेगी।
तब स्वय ही आलिंगन हो जायेगा खुशहाली का।
सब कह उठेंगे यही है ' मेरा भारत '।

' मेरा भारत '
Tuesday, December 1, 2015
Topic(s) of this poem: feel
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 01 December 2015

एक खुशहाल भारत का चित्र प्रस्तुत करती है यह रचना. अन्याय न सहें, अहम का अंत करें और विचारों का टकराव न होने दें. बहुत सुंदर. धन्यवाद. प्रत्येक व्यक्ति को / प्रत्येक गलत को, गलत कहना सिखाओ।

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Ajay Srivastava

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