एम पी के बुढ़ऊ आका Poem by Upendra Singh 'suman'

एम पी के बुढ़ऊ आका

Rating: 3.0

एम पी के बुढ़ऊ आका
रंगे हाथ वो गिरफ्तार हैं डाल रहे थे हुस्न पे डाका.
बड़बोले भोपूजी गुप-चुप मचा रहे थे धूम-धड़ाका.
लाज-शर्म सब घोल पी गए ले ली है इज्जत से कट्टी.
बिजली गुल गई पोल खुल गई पढ़ा रहे थे सबको पट्टी.
बहुत खबर लेते थे सबकी एम पी के वो बुढ़ऊ आका.

रंगे हाथ वो गिरफ्तार हैं डाल रहे थे हुस्न पे डाका.
पर उपदेश कुशल बहुतेरे कहाँ गई संहिता तुम्हारी.
खुद की करनी खुद पर देखो पड़ती है कितनी भारी.
सरे बाजार बिकती है इज्जत लगता अजब ठहाका.
रंगे हाथ वो गिरफ्तार हैं डाल रहे थे हुस्न पे डाका.

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Tuesday, December 1, 2015
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 12 December 2015

बढ़िया कविता लेकिन कटाक्ष किस बात का? क्या किसी ने चोरी की है? आजकल लोग बिना शादी किये साथ साथ रह लेते हैं. जहाँ अमरमणि त्रिपाठी जैसे दागदार व्यक्ति अपनी पत्नी के होते हुए एक कुंवारी कवियित्री को गर्भवती बना कर मार डालते है, वहाँ आप एक अच्छे भले व्यक्ति पर इसलिए व्यंग्य कर रहे हैं कि हमारे दकियानूसी समाज की दृष्टि में उसकी उम्र अधिक है?

0 0 Reply
T Rajan Evol 02 December 2015

Very well written poem...I liked it.

1 0 Reply
M Asim Nehal 02 December 2015

Badiya kavita hai, maza aa gaya padh kar, Dhanyavaad.

1 0 Reply
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