बापू क सुराज Poem by Upendra Singh 'suman'

बापू क सुराज

भोजपुरी रचना
कहाँ भटकि गइल बापू क सुराज पिया ना|
आवा खोजल जाय मिलिके सभे आज पिया ना|

देखे के ओकरा के कहाँ-कहाँ धवलीँ|
हेरत-हेरत हारि गइलीँ तबहूँ ना पउलीं|
के हो हड़पि लिहल जनता क राज पिया ना|
कहाँ भटकि..............................................
एतना दिन बीति गइल पऊले आज़ादी|
रटत-रटत नाम ओकर गइलीं बुढ़िया दादी
कबहूँ सुनलीं ओकर आवाज़ पिया ना|
कहाँ भटकि..............................................
केतना हो बसंत बीतल, बीतल सवनवां|
तरसि गईलं देखे के हमरो हो मनवां|
के हो लूटिलिहल देसवा क ताज पिया ना|
कहाँ भटकि..............................................
घरवे क लोगवा अपने करत बा घोटाला|
निकलत बा देसवा क हमरे हो दीवाला|
अरे, कईसन इ हउवे राज-काज पिया ना|
कहाँ भटकि..............................................
छीनति बा महंगाई अगवं| क थाली|
राजनीति कुलटा बजावति बा ताली|
भइलीं काहें हो किस्मतिया नाराज पिया ना|
कहाँ भटकि..............................................
करति बा छिनार बलम देखा जोराजोरी|
कूदि-कूदि भरति हउवे आपन तिजोरी|
डूबति हउवे हमार सोनवा क जहाज पिया ना|
कहाँ भटकि..............................................
लुटले भगत सिंह आज़ाद क सपनवां|
देखि-देखि छपटाला मोरा परनवां|
हमके भावे ना कवनो साज-बाज पिया ना|
कहाँ भटकि..............................................

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Tuesday, December 1, 2015
Topic(s) of this poem: freedom
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