नदी, तुम माँ हो न!
नदी, तुम माँ हो न!
हमारी माँ हो न!
सुना था,
माता कभी कुमाता नहीं होती|
तो फिर, तुम क्यों बहाती हो
गाँव गलियाँ शहर
हमारा अपना घर?
क्यों मचाती हो मृत्यु का तांडव?
क्यों उगलती हो जहर?
तुम तो हमारी माँ हो न!
नदी! कहीं, हम वशु तो नहीं,
जो तुम हमारा उद्धार कर रही हो?
परन्तु, यदि हम वशु हैं तो –
कहाँ हैं भरत के आदर्श?
कहाँ है हस्तिनापुर ठहर?
नदी! तुम क्यों ढाती हो हम पर कहर.......? ? ? ? ? ? ?
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem