खूब सजावट Poem by M. Asim Nehal

खूब सजावट

Rating: 5.0

इस दिल की मैंने क्या खूब सजावट की है..
एक कोने में है ग़म और एक कोने में दवा भी है...

अरे बीच का क्या बोलूं धोखे से सजा रखा है
बेवफाई का है सोफ़ा और कुर्सी बुराई की है

एक आँख नहीं भाता मुझको हसना किसी का
कांटे कटीले मैंने राहों में बिछा रखा है....

इस दिल का फरेब जाने किस किस को दिखाइए देगा
एक खून का दरिया है और चोट अदाओं की भी है...

झील मोहब्बत की रोकेगी राह उनकी जो प्यार से मिलते हैं
सैलाब खबर लेगा उनकी जो मिलकर रहने की सोचते हैं....

बाहर से मैंने इसे क्या खूब सजा दिया है
अच्छाई भलाई का आईना इसमें लगा दिया है....

Wednesday, December 2, 2015
Topic(s) of this poem: satire,satire of social classes
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 02 December 2015

आज हमारे समाज में चारों ओर जो दिखावट और बनावट का बोलबाला है, उस पर आपने अच्छा कटाक्ष किया है. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति. धन्यवाद, मो. आसिम जी.

1 0 Reply
Kumarmani Mahakul 02 December 2015

Very thought provoking sharing done definitely. Wisely amazing sharing done definitely.10

2 0 Reply
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