वह गरीब था
मगर, आले दर्जे का धूर्त, निकम्मा,
मक्कारऔर आवारा था,
दो टूक शब्दों में कहें तो –
उपरवाले ने उसे नेताओं के सभी दुर्गुणों से संवारा था.
एक दिन बैठे-बिठाये उसके मन में एक सूझ आई,
उसने सोचा कि -
क्यों न गरीबों के हक़ की लडूं लड़ाई.
होगी लूट की छूट और मुफ्त में मिलेगी बड़ाई
फिर क्या था
वह गरीबों के हक़ के लिए उठ खड़ा हुआ,
और इस तरह उसके भीतर का
शातिर व हरामखोर नेता धीरे-धीरे बड़ा हुआ.
आज वह अमीरों में अमीर हो गया है.
इतना ही नहीं,
जोड़-तोड़ से उसने शूबे की कुर्सी भी हथिया ली है
और अब तो
पूरे प्रदेश की तकदीर हो गया है.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’
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This is a daring attack on the politicians of the day in our country. Amazing satire. I quote: उपरवाले ने उसे नेताओं के सभी दुर्गुणों से संवारा था. वह गरीबों के हक़ के लिए उठ खड़ा हुआ, आज वह अमीरों में अमीर हो गया है.
Thanks Rajnish Ji