'पतझड़ की हवा' Poem by Divyani Pathak

'पतझड़ की हवा'

नशा है इन पतझड़ की हवाओं में
झूमते बादलों के बीच
सरगम की गीतों में
कहीं सहमा खड़ा चाँद
डर रहा छुप जाने से
कहीं गुनगुनाती हवा
मुस्कुरा रही उसे डराने मे
दिलचस्प खेल है इन दिशाओं का
मासूम निगाहें खो जाती हैं इनमें
सनसन की धुन
डालियों की ताल
पत्तों की पतंग
मिठास भरी रस
रिमझिम सावन को चीरती
शरद् आकाश के बाद
मनचली मतवाली मखमली अहसास लिए
पतझड़ की ये मदहोश हवाएँ
प्रेमी को याद दिलाती
कवि को दिखाती ख्वाब
पतझड़ की ये मदहोश हवाएँ
घुला लेती सारे गम
अकेले राहों मे साथी बन जाती
सूखेपन की प्यास
नशा है इस लय मे
मदहोश है ये पतझड़ की हवा ।

-DIVIRA

Thursday, December 17, 2015
Topic(s) of this poem: nature
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Divyani Pathak

Divyani Pathak

Bagaha, West Champaran, Bihar
Close
Error Success