छूने की चाह Poem by Ajay Srivastava

छूने की चाह

छूने की चाह है सच का रूप देखना है|

उचाई तक जाना है उसका अंतिम छोर देखने की चाह है|
समुन्द्र को टटोलना है उसकी गहराई का एहसास करना है|
पृथ्वी के भंडार से साक्षात्कार करना है दान के उद्गम को समझना है|
हवा से आलिंगन करना है जीवन का अर्थ जानना है|

आधुनिकता में स्वार्थ और निस्वार्थ के अंतर को परिभाषित करना है|
वैज्ञानिक चमक और प्राकर्तिक चमक में तुंलना करनी है|
परिवर्तित स्वभाव और स्थायी स्वभाव का आकर्षण महसूस करना है|
बस एक वो ही पल जिसका सबको प्रीतिक्षा रहती है|

कल्पना को यथार्थ रूप लेते हुए देखना है|

छूने  की चाह
Monday, December 21, 2015
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