रात भर बारिश Poem by Debendra Majhi

रात भर बारिश

रात भर बारिश की बूंदें गिरे
पेड़ों पर टप, टप, टप |

पेड़ों के पत्तों में लिपटी हुई है,
गाँव की मिट्टी, यादें
और कुछ आसमाँ का टुकड़ा |

उस आसमाँ, जिसका रंग देखते चल पड़ा था
एक पगड़न्ड़ी पर, शहर की और |

रात इतनी गूमसुम क्यों है |
क्या वो नींद में सोई है,
या यादों में खोई है,
या फिर कोई आंधी तूफ़ान की दस्तक है |
रात इतनी गूमसुम क्यों है |

खुद को पता नहीं है मंजिल,
बहला, फुसलाकर,
आसमाँ का रंग दिखाकर,
ले आया था, वह रास्ता,

ना जाने खुद कहाँ खो गया,
या रात भर बारिश में धो गया |
मंज़िल को चौराहें पर छोड़ कर |

Tuesday, March 20, 2018
Topic(s) of this poem: destiny
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Debendra Majhi

Debendra Majhi

Odisha, India
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