एक रात
रसोई में रोटी बना रही मम्मी से
लाड़ला बेटा ज़िद करने लगा.
मचलने लगा
मम्मी का हाथ पकड़ उछलने लगा
और रोते-रोते कहने लगा -
मम्मी जी, मम्मी जी, ये सब छोड़ो न,
मेरे पास बैठो न, आओ न, आओ न,
मुझे एक कहानी सुनाओ न.
मम्मी बोली -
बेटा, जरा सब्र करो,
घड़ी ने अभी पूरे साढ़े दस बजाये हैं,
और अब तक तुम्हारे पापा जी घर नहीं आये हैं.
अभी, जब तुम्हारे पापा जी घर आयेंगे
और मैं उनसे पूछंगी
कि -
क्यों जी अब तक कहाँ थे?
तो वे न केवल हमें एक से बढ़कर एक
नई-नवेली कहानियाँ सुनायेंगे
बल्कि हमारे सामने थिरकते हुए भी नज़र आयेंगे.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'
hehehe..... last tak i was very curious ki papa ji ki kahaniyan title kyu hai... fir end hote hi chehre pe muskan aa gai.. thanks for this poem.. looking forward for more: ')
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बहुत बढ़िया. अच्छा व्यंग्य किया गया है. धन्यवाद, मित्र.