उफान Poem by Ajay Srivastava

उफान

नफरत की नदी उफान पर है|
अपने साथ अशंति की लहर लिए|
भ्रष्टाचार के व्रक्ष को अपने मे समहित कर|
गन्दगी को अपने साथ तीव्र गति से|
विलय के लिए अग्रसर हो चली|
अपने असतित्व को मिटाने के लिए|
अपनी अशांत स्वाभाव को त्यागने|
संग ले चली समस्त दुरभावो को|
शांत समुन्द्र की तह मे समा जाने को|
यही है नीयती इस नफरत की नदी|

उफान
Wednesday, February 17, 2016
Topic(s) of this poem: thought
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 17 February 2016

Bahut Badhiya...................10

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