ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ Poem by Tarun Upadhyay

ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ

चाँद सूरज, सितारे सभी दिलनशीं,
छा रही हो जहाँ हर तरफ ही खुशी,
ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ ||

खो गया जो जवानी के सैलाब में,
हो के मदहोश कोई हसीं ख्वाब में,
जो मिला न किसी जाम और शराब में,
ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ ||

कोई मुझको बताये कहाँ बालपन,
मेरा रंगी जहां खुशनुमा वह चमन,
जिसके साए में होते फ़रिश्ते मगन,
ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ ||

ज़िन्दगी भर की खुशियाँ सभी वार दूँ,
मालोज़र हारदूँ दिल औ जा वार दूँ,
गर कोई दे पता कहकशां वार दूँ,
ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ ||

लाख हों मैक़दे अब मेरी राह में,
लालारुख से हसीं हों मेरी चाह में,
रोक पाए न कोई कशिश राह में,
ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ ||

COMMENTS OF THE POEM
Ajay Srivastava 13 February 2013

comment in this box in Hindi not recognise so i am writting hindi in english Dundhne se to bhagwan bhi mil jate hai agar dil se dundho ge to bachpan mil jayaga aacha ya bura, parivartan sambhav to nahi yad or vo lamhe to jarror mil jayegi.

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