तुम जो होंसला दिखाओ Poem by Dr Dilip Mittal

तुम जो होंसला दिखाओ

तुम जो होंसला दिखाओ तो फर्क पड़ता है साहेब.
वर्ना, नंबर दो क्या, नंबर एक भी हो जाओ, किसे फर्क पड़ता है?
जलसे, जयकारे, चापलूसों की फ़ौज, किसे फर्क पड़ता है?
देशभक्त को अपना दोस्त बनाओ तो फर्क पड़ता है,
दूसरों के भ्रष्टाचार की कलई खोलो, किसे फर्क पड़ता है?
अपनों के गलत कामों को रोको तो फर्क पड़ता है,
पिछड़ों के मसीहा बनो किसे फर्क पड़ता है?
प्रतिभा का सम्मान करो फर्क पड़ता है,
दरिंदगी के बाद चार आंसू बहाओ, किसे फर्क पड़ता है?
औरत के प्रति इज्जत की अलख जगाओ तो फर्क पड़ता है,
पडोसी की करतूतों पर झूंटी भभकी दिखाओ किसे फर्क पड़ता है?
जवानों के दिलों में विश्वास जगाओ तो फर्क पड़ता है,
दौलत, शोहरत, रुतबा दिखाओ, किसे फर्क पड़ता है?
एक बार ईमानदारी से सरकार चलाओ तो बहुत फर्क पड़ता है साहेब.
बहुत फर्क पड़ता है साहेब.

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