कितने असंवेदनशील हो गए हैं Poem by M. Asim Nehal

कितने असंवेदनशील हो गए हैं

Rating: 5.0

न जाने क्या हो गया है हमें
न जाने क्यों हो गया है हमें
जब संकट के बादल छाए हैं घने
और अंधेरों ने आ घेरा है हमें
बजाये इनसे लड़ने के
और डट कर सामना करने के
हम क्यों असंवेदनशील हो गए हैं?

एक हैं जो भीतर की लड़ाई लड़ रही है
जबकि जनता हाहाकार कर रही है
खोयी सत्ता को वापस पाने केलिए
वो लगे हैं जुगत जमाने के लिए
नेता भी नही स्थायी पास उनके
और करते हैं बेवजह सवाल चुनके
ख़ैर उनकी लुटिया भी डूबी है इसी वजह से

लेकिन अफ़सोस होता है उनपर
जिन्हे जनतानेभेजाहै चुनकर
वो भी तो सिर्फ बातें करते है जमकर
काम कोई किया नहीं ठोस अब तक
बताओ ऐसा चलेगा कब तक?

अब तो सब्र का बांध भी टूटने को है
जनता का गुस्सा भी फूटने को है
बातें और काम दोनोंकरते हैं मन की
पूछो सवाल तो देतेहै धमकी
आज जबकि बच्चों को खाने की चिंता है
वो खिलौनों की बात करते हैं
कितने असंवेदनशील हो गए हैं

Sunday, August 30, 2020
Topic(s) of this poem: political,satire,satirical
COMMENTS OF THE POEM
T Rajan Evol 30 August 2020

Bahut khoob. Political satire at its best.

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Shreya Hacks 30 August 2020

I don't know this language but I think it should be a great poem. Thanks sharing.

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Sharad Bhatia 30 August 2020

जी बिलकुल असंवेदनशील हो चुके हैं सता के लालच में बाप, बेटा लड़ रहा है पल मे रिश्तों के मायने बदल जाते हैं कभी एक ही थाली में खाया करते थे अब थाली भी अलग - अलग कर जाते हैं धर्म की आड़ में मानवता को शर्मसार कर जाते हैं । बहुत चिन्ता जनक विषय को एक बेहतरीन रचना के द्वारा हम सब बताने के लिए आपका बहुत - बहुत आभार 10++

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Varsha M 30 August 2020

Ek gehra saach bakhoobi chitrit kiya hai aapne. Kab tak chalega... Dhanyawad.

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Aarzoo Mehek 30 August 2020

जानत तो नेता चुनती है इस विश्वास पर के देश को आगे ले जाएंगे लेकिन ये तो देश को डुबोने चले है। कितनी बेरोज़गारी बढ़ गई है, कुछ भी तो सही नहीं है। सद अफसोस के हमें ये सब झेलना पड रहा है। दिल को दुखाने वाली रचना। १०++ सबके सामने इस मुद्दे को लाने के लिए।

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