ये वक़्त है साहब
हर क्षण बदलता रहता है
वक़्त क्या कहता है
खुद को समेटता रहता है
बेहिसाब अटकलों में फँसकर
आज और कल में खेलता रहता है
ये वक़्त है साहब
हर क्षण बदलता रहता है
किसी को दिखाई नहीं देता
छुपकर सबको देखा करता है
तिनकों से महल को बनाकर
महल को बंजर में बदलता रहता है
ये वक़्त है साहब
हर क्षण बदलता रहता है
देखकर सबको तौलता रहता है
मौन होकर स्वीकृति देता है
ये कहाँ कभी ठहरा है
इसका सब पर पहरा है
ये वक़्त है साहब
हर क्षण बदलता रहता है
ढीठ बड़ा ये गहरा है
सुनता नहीं ये बहरा है
कोई न जाने कैसा इसका चेहरा है
ये वक़्त है साहब
हर क्षण बदलता रहता है
***
Bahut behtareen rachna. Ye waqt hai Sahab har chan. Badalta rehta hai...
Wah wah......Chalo waqt se sath Musafir, maan lo uski baat Musafir....10++++ Very thoughtful poem Aap Ki kavitayen dil ko chu jati hai... ना रुकता है न ठहरा है चलता है चलवाता है मर्ज़ी जिनता ज़ोर लाग लो लाख लगा लो पहरा पानी से तेज़ फिसल जायेगा घाव लगा कर गहरा
एक बेहतरीन रचना एक बेहतरीन कवयित्री के द्वारा यह कमबख्त " वक़्त" ही तो है, जो अपनों को अपनों से दूर ले जाता है।। एक शेर अर्ज़ करना चाहता हूँ साहिल के किसी एक कोने मे ख्वाब देख रहा था, . शायद वक़्त बदलने का इंतजार कर रहा था।। मुझे पता हैं वो मुझसे मोहब्बत नहीं करती, फिर भी मैं कमबख्त उसके बदलने का इंतजार कर रहा था।। Rated 100++
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समय बदलता रहता है और कवि को लिकने के लिए नया विषय मिलता रहता ह, एक सूंदर कविता बहुत अछि लगी