समझना Poem by Ajay Srivastava

समझना

अब और नही|
अब तो रोकना है|
अब नीरसता को छोडना होगा|
अब तो सजगता का साथ निभाना है|

जाति व धर्म की लडाई|
बेल की तरह बडती कीमते|
धनवान और निर्धन की असमानता को|
बडती धृणा की राह को|

अब तो शब्दो की परिभाषा को समझना है|
यही हम सब की राह की दिशा के मार्ग दर्शक है|

शब्द ही मूर्ख बनाते है|
शब्द ही क्रोधित करते है|
शब्द ही धृणा फेलाते है|
शब्द ही प्यार का स्त्रोत है|

समझना
Monday, August 22, 2016
Topic(s) of this poem: understanding
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Ajay Srivastava

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