शांति और सद्भावना Poem by C. P. Sharma

शांति और सद्भावना

वही हिँदू है
वही है मुस्लमान
वही ईसाई है
वही है गुरु ज्ञान
वही पेड़, पौधा, पक्षी, पशु
वही है इंसान

ऐ, उसकी कटपुतलिओं
क्यों भूले हो औक़ात
ये जात-पात, कबीले
सब में वही है एक
उसमे न कोई सीमायें
असीम उसके भेख

उसकी असीम अनुकम्पा में
मिल बैठ के गाओ
भुला दो सभी भाषा, धर्म
पहचानो अपना कर्म
आपस में लड़ते हो
थोड़ी सी कर लो शर्म

बारूद की ढेरी पे बैठ
कर रहे हो स्व विनाश
इस मानस की जात का
क्यों न करते हो विकास
प्रकृति साथ साथ चलो
आने वाली पीढ़ियों का
कुछ तो ख्याल करलो

यही सर्वधर्म है
यही मानस कर्म
शांति और सद्भावना में ही
विश्व का कल्याण

वही हिँदू है
वही है मुस्लमान
वही ईसाई है
वही है गुरु ज्ञान
वही पेड़, पौधा, पक्षी, पशु
वही है इंसान

शांति और सद्भावना
Monday, August 22, 2016
Topic(s) of this poem: goodwill,peace,unity
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C. P. Sharma

C. P. Sharma

Bissau, Rajasthan
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