तुम्ही में तुम, मुझी में मैं Poem by Rahul Awasthi

तुम्ही में तुम, मुझी में मैं

Rating: 5.0

तुम्ही में तुम, मुझी में मै, ना हो पाए।
कितनी कौशिशें की मगर कमबख्त हम अलग ना हो पाए।।

ये ख्वाईश जो ना तेरी थी,
ना ही मेरी थी,
शायद खुदा की होंगी, की हम एक हो पाए ।।

मुझे मालूम था ये ज़ेहर है जो सेहद सा है दिखरहा
बहुत चाहा मगर इससे दूर ना हो पाए।।

किस तरह कैद से हो गए थे तेरे मंजरों में
कि बाँह फैलाये पुकारती रही दुनिया, मगर उसके ना हो पाए।।

Saturday, August 27, 2016
Topic(s) of this poem: love,sad
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
राय दें ।
COMMENTS OF THE POEM
Kavita Singh 27 August 2016

wah beautiful.... tumhi me tum mujhi me main na ho paye

0 0 Reply
Rahul Awasthi 27 August 2016

thanks

0 0
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success