वो दरख्त की छाओं Poem by M. Asim Nehal

वो दरख्त की छाओं

Rating: 4.9

क्या एहसास कराती थीवो दरख्त की छाओं
पल में सूरज की गर्मी पल में ठंडी हवा दिखती

वो बैठना खटिये पर पाओं लंबे पसार
वो रंग बिरंगी तितलियोंको ताकना बार बार

गुज़रतीबैल गाडी को दूर तक निहारना
गलेकी बजती घंटियों को अंत तक सुनना

कभी गिरते पत्तों को हवा में उड़ते देखना
कभी गिनना और उठाकर खटिये पर सजाना

चूल्हे में पक्ति रोटियों को सिकते हुए देखना
कोयले की आग को पानी से बुझाना

न लौटेगा वो बचपन न लौटेगी वो कहानी
न वो दरख्त की छाओं होगी, न हवा की रवानी

बदल गया सब वक़्त के साथ साथ अब
छूट गयी पतंग भी समय के हाथ अब

वक़्त मिलता नहीं, खटिया मिलतानहीं
बैल और घंटी अब ट्रेक्टर और धुँआ हो गए

Saturday, August 27, 2016
Topic(s) of this poem: memories
COMMENTS OF THE POEM
Kashif Lakhnavi 21 July 2020

वो दरख्त की छाओं hame bhi yaad aati hai ab kya karen kaid hai char diwaron mein.

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Akhtar Jawad 08 September 2016

Sweet memories nicely painted......................

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Kavita Singh 29 August 2016

न लौटेगा वो बचपन न लौटेगी वो कहानी, छूट गयी पतंग अब समय के हाथ bahut khub likha hai aapne..kash fir se pachpan laut aata

1 0 Reply
T Rajan Evol 29 August 2016

Wa Wa ati sunder bachpan ki yadein.

1 0 Reply
Abduhoo Salamath 27 August 2016

न लौटेगा वो बचपन न लौटेगी वो कहानी न वो दरख्त की छाओं होगी, न हवा की रवानी वाह वाह क्या कहने है.बचपन का दौर ही किआ दौर होता है. आता है याद मुझको गुजराहुवा ज़माना

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M. Asim Nehal

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