जल बिना तड़पे है माहि इश्क़ वह तंदूर है Poem by NADIR HASNAIN

जल बिना तड़पे है माहि इश्क़ वह तंदूर है

गुफ़्तोगु करले तू आ मेरे तू पास आ
तन्हां हूँ मैं तेरे बिना मुझको यूँ अब ना सता
तू साज़ है परवाज़ है मेरी ज़िन्दगी का राज़ है
गाता रहूँ वह गीत हूँ क्यों होगई पल में ख़फ़ा
गुफ़्तोगु करले तू आ मेरे तू पास आ


मेरी ज़िन्दगी मेरी बन्दगी तू ही ज़ोनूं तू हौसला
मेरा इश्क़ तेरी सल्तनत आदिल तुहि कर फैसला
तेरी जुस्तजू, तेरी आरज़ू, जीने ना दे, आ रूबरू
साहिल तुहि सहरा है तू जी ना सकूँ होकर जुदा
नादान था अनजान था देदे मुझे जो हो सज़ा
दिल तोड़ कर मुंह मोड़ कर जाऊं तो मैं जाऊं कहाँ
गुफ़्तोगु करले तू आ मेरे तू पास आ


मेरी दास्ताँ मेरी आरज़ू मेरी ज़िन्दगी तुहि आबरू
जान ए ग़ज़ल मेरी शाएरी एहसास ए दिल धड़कन है तू
मेरा हाल ए दिल सुन बेखबर बेचैन हूँ मैं किस क़दर
अब्र ए सेयाह ढल गई तुझे देख कर मेरी माहे रू
गुफ़्तोगु करले तू आ मेरे तू पास आ


जल बिना तड़पे है माहि इश्क़ वह तंदूर है
कर कफ़न तैयार मेरी रूह तन से दूर है
मेरा हमदम मेरा साथी मेरा हर मुश्किल कुशा
आज़माइश कर रहा है क्यों मेरा मुझ से ख़ुदा
गुफ़्तोगु करले तू आ मेरे तू पास आ


By: नादिर हसनैन

Thursday, February 16, 2017
Topic(s) of this poem: song
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