होकर दूर वतन से पंछी बंद क़फ़स में रहता है
आँखें नम हैं दिल अफ़्सुर्दाह हर पल आँहें भरता है
है मजबूरी घर से दूरी पैसे चार कमानें हैं
ख़ुशी हो घर में ख़ुशहाली हो सोच के हर ग़म सहता है
भाई बहन हर दोस्त पड़ोसी बीवी बच्चे माँ से दूर
दर दरवाज़ा खेत मोहल्ला अपने हिंदुस्तान से दूर
घर में दूल्हन आस लगाए चुपके चुपके रोती हैं
उस लम्हें के इंतज़ार में ख़ुशी ईद की होती है
आया आया परदेसी जब लौट के कोई कहता है
होकर दूर वतन से पंछी बंद क़फ़स में रहता है
: नादिर हसनैन
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