होकर दूर वतन से पंछी बंद क़फ़स में रहता है Poem by NADIR HASNAIN

होकर दूर वतन से पंछी बंद क़फ़स में रहता है

होकर दूर वतन से पंछी बंद क़फ़स में रहता है
आँखें नम हैं दिल अफ़्सुर्दाह हर पल आँहें भरता है

है मजबूरी घर से दूरी पैसे चार कमानें हैं
ख़ुशी हो घर में ख़ुशहाली हो सोच के हर ग़म सहता है



भाई बहन हर दोस्त पड़ोसी बीवी बच्चे माँ से दूर
दर दरवाज़ा खेत मोहल्ला अपने हिंदुस्तान से दूर

घर में दूल्हन आस लगाए चुपके चुपके रोती हैं
उस लम्हें के इंतज़ार में ख़ुशी ईद की होती है
आया आया परदेसी जब लौट के कोई कहता है

होकर दूर वतन से पंछी बंद क़फ़स में रहता है

: नादिर हसनैन

होकर दूर वतन से पंछी बंद क़फ़स में रहता है
Saturday, October 15, 2016
Topic(s) of this poem: scared
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