मैं हूँ वक्त का शिकार
करे दो तरफ से मार
बना हुआ हूँ मैं लाचार
या मुझ में है विकार
वक्त फ़िसल गया
कर रहा हूँ दुष्प्रचार
कभी तंत्र को दूँ दोष
कभी पढूं मैं मंत्र
यों कर्महीनता को रहा हूँ मैं पोष
न भूत भूत का विचार
वर्तमान कर्मकार्य
बने भविष्य शिष्टाचार
मुझ में ही है विकार
वक्त अब निकल गया
कर रहा हूँ दुष्प्रचार
कर्म करने में है कष्ट
पर भविष्य हो स्पष्ट
थोड़ा बहुत तो सहो
जो करें अब कर्म
अभिमंत्रित उनके मंत्र
उन्हें कर्म करने दो
उन्हें कर्म करने दो
अकर्मण्यता से मुक्त हो
सत्कर्म मार्ग पे बढ़ो
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