थोड़ा बहुत तो सहो Poem by C. P. Sharma

थोड़ा बहुत तो सहो

मैं हूँ वक्त का शिकार
करे दो तरफ से मार
बना हुआ हूँ मैं लाचार

या मुझ में है विकार
वक्त फ़िसल गया
कर रहा हूँ दुष्प्रचार

कभी तंत्र को दूँ दोष
कभी पढूं मैं मंत्र
यों कर्महीनता को रहा हूँ मैं पोष

न भूत भूत का विचार
वर्तमान कर्मकार्य
बने भविष्य शिष्टाचार

मुझ में ही है विकार
वक्त अब निकल गया
कर रहा हूँ दुष्प्रचार

कर्म करने में है कष्ट
पर भविष्य हो स्पष्ट
थोड़ा बहुत तो सहो

जो करें अब कर्म
अभिमंत्रित उनके मंत्र
उन्हें कर्म करने दो

उन्हें कर्म करने दो
अकर्मण्यता से मुक्त हो
सत्कर्म मार्ग पे बढ़ो

थोड़ा बहुत तो सहो
Monday, December 5, 2016
Topic(s) of this poem: painful,time,tolerance,transformation
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C. P. Sharma

C. P. Sharma

Bissau, Rajasthan
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