पता नही! Poem by Ajay Srivastava

पता नही!

गाँव - गाँव शहर - शहर
खबर फेली हुई है 11
लोग इनके पीछे भाग रहे है
कुछ देख कर खुश हो जाते है
तो कुछ सुबह व शाम
इनके पीछे लगे रहते है 11
और लगे भी क्यों लोक नही
स्वर्ग लोक की परी से भी सुंदर
हमारी रिशवत रानी और धोटाला परी 11
पर एक दिन यह पकडी गयी
सब पुछने लगे कितने करोड का है?
कोन-कोन शमिल है पता नही!
जाच कोन करेगा पता नही!
अधिकारी रिशवत रानी लेगा पता नही!
या फिर धोटाला परी लेगा पता नही!
सजा होगी या नही पता नही!
पर एक बात तो निशचत पता है 11
गाँव - गाँव शहर - शहर रिशवत रानी और धोटाला परी है 11

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success