पिता Poem by Anmol Phutela

पिता

कल तुम बच्चे थे, तब वो जवान थे,
आज तुम जवान हो, तब वो बूढ़े हैं,

जब वो जवान थे, तुम्हारी हर बात मानते थे,
अब वो बूढ़े हैं, तब भी तुम्हारी हर बात मानते हैं,

क्योंकि नहीं मानेंगे तो तो तुम लड़ झगड़ आगे चल दोगे,

ध्यान कीजिए अपने बच्चों का,
जो संदेश तुम उनको ऐसा दोगे,

तुम लड़ लेते हो राई का पहाड़ बना हर बात पर,
ज़रा उनसे पूछिये, जिन्हें कुछ याद नहीं पिता के नाम पर,

तस्वीर भी नहीं है, चेहरा तक याद नहीं,
क्या ही पता होगा, जब पिता चल बसे 2 साल पर,

तुम कहते हो ये बात नहीं समझते,
कुछ कहते होंगे, काश उनके पिता भी होते तो ऐसा करते,
उनसे पूछो जिन्होंने पिता को सरहद पर है खो दिया,
उनसे जानों जिन्हें उनका शीष भी नहीं मिला,

कैसा होता होगा, पिता का कभी एहसास ना होना,
तुम भी सीख लो दोस्त, इनको जीतेजी मत खोना।।

पिता
Tuesday, January 17, 2017
Topic(s) of this poem: family life
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