सर्द घनी रात के कोहरे में तुम्हारी बाहों को तरसती हैं मेरी बाँहें..
सन्नाटे का शोर तुम्हारी साँसों की आवाज़ बनकर सताता हैं मुझे...
झील के पानी में वो पेड़ की परछाई जैसे तुम्हारी आँखों में मेरी तस्वीर उतर आई हो...
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ये मौसम की नमी तुम्हारे न होने की कमी का अहसास दिलाती हैं...
पेड़ों की टहनियाँ ख़ामोश हैं जैसे उन्हें भी ग़म हो तुम्हारे मेरे साथ ना होने का..
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ये सर्द हवाएँ मुझे छुकर एसे गुज़र रही हैं जैसे तुम्हारे होंठ चूमते हो मेरे बदन को...
ये पत्तियों पर शबनम की बूँदें जैसे ये रो रही हो मेरी तन्हाई के आँसू...
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ये गुमनाम रास्ते और ये सर्दी की रातें मुझे बेदर्दी से सता कर बता रही हैं के तुम होती तो भी सब कुछ वैसा ही रहता जैसा हैं...
मगर ये मौसम दर्द का क़हर ना बरसा पाता....
ये सर्दी ना सता पाती इतनी बेदर्दी से मुझे...
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खुशनुमा हो जाते ये पल, हलचल होती इन बहारों में, ख़ुशी के गीत गाती ये रात जो सुनसान हैं तुम्हारे ना होने से...
हसीन हो जाती ये वादियाँ और सुकूँ की गहरी नींद सोते ये पेड़...!
अँधेरे में उजाले होते तुम्हारे गालों की रोशनी से....
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के बालों से छन छन के आती तुम्हारे गालों की रोशनी...
मैं बिखर जाता तुम्हारी बाहों में...
दोनों की परछाई साथ दिखती राहों में..
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मगर अफ़सोस तुम नहीं हो..!
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