बाल श्रम Poem by Anoop Pandit

बाल श्रम

छोटे छोटे हाथों में बड़े बड़े बोझ
कूड़े के ढेर में रहे ज़िन्दगी खोज।

सुबह सवेरे निकल पड़ते है
ले हाथों में बस्ता
किताबें नहीं हैं उसमें, फिर भी
ढूंढें जीने का रस्ता
निभा रहे भूमिका गिद्ध की
मरते जीते रोज़
कूड़े के ढेर में रहे जिंदगी खोज।

ठेले पे हाथ बंटा बाप का
भूले बचपन अपना
तुम ही कहो क्या हो सकता है
उन आँखों का सपना
उन नन्हीं आँखों के सपने
हो रहे ज़मींदोज़
उस ठेले के चाकों में रहे ज़िन्दगी खोज।


अनूप शर्मा 'मामिन'

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
आओ हिंदुस्तान को बाल मजदूरी की कुप्रथा से आज़ाद कराने का प्रयत्न करें।
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