नसीहत Poem by Anoop Pandit

नसीहत

रूबरू हो ग़मों से पर ये अहसास रख
गम कभी दूर तलक नहीं जायेंगे
बीत जायेंगे दिन दुखों के अनु
दिन सुखों के भी फिर लौट कर आयेंगे
मैंने माना कि ग़मों में है मुश्किल बहुत
बेशक ये तुझको ही रुला जायेंगे
हौसला रख, न निराश हो मन में
ये दिन ही तो है ये भी ढल जायेंगे
दिन में सुखों के न अकेला तू होगा कभी
रूठे सभी रिश्तेदार वापस आ जायेंगे
खुशियों में उड़ानों पर रखना काबू
पास जाते ही सूरज के पंख जल जायेंगे
पाँव तेरे जमीं से जो उखड़े कभी
झोंके हवा के ही तुझको गिर जायेंगे
मान लेना नसीहत ये बुजुर्गों की है
जो गिरा तो अपने भी न उठाने आयेंगे

अनूप शर्मा'मामिन'

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
इन नसीहतों का रखना ए लोगों संभाल के ।
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Anoop Pandit

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