ये किस्मत ही तो है जो जुदा करके हमे उनसे फिर से मिला देती है।
दो दिलों की मुलाक़ात पर बंदिशें लगाकर किसी की वफ़ा का सिला देती है।
कभी उन राहों से गुजरते थे हम
दिल में उमीद लेकर अरमान लेकर
मगर क्या हुआ कि हर मोड़ पर
आज वो ही खड़े हैं ग़म का सामान लेकर
ये दुनिया न अपनी
ज़माना न अपना
कहाँ अब मैं जाऊं
ठिकाना न अपना
न रूह है ना जिस्म है
सबकुछ फना है
ये कैसी कहानी है
जो दर्द को जिला देती है
दो दिलों की मुलाक़ात पर बंदिशें लगाकर
किसी की वफ़ा का सिला देती है
ये किस्मत ही तो है...
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