ये किस्मत ही तो है Poem by Ahatisham Alam

ये किस्मत ही तो है

ये किस्मत ही तो है जो जुदा करके हमे उनसे फिर से मिला देती है।
दो दिलों की मुलाक़ात पर बंदिशें लगाकर किसी की वफ़ा का सिला देती है।

कभी उन राहों से गुजरते थे हम
दिल में उमीद लेकर अरमान लेकर
मगर क्या हुआ कि हर मोड़ पर
आज वो ही खड़े हैं ग़म का सामान लेकर

ये दुनिया न अपनी
ज़माना न अपना
कहाँ अब मैं जाऊं
ठिकाना न अपना

न रूह है ना जिस्म है
सबकुछ फना है
ये कैसी कहानी है
जो दर्द को जिला देती है
दो दिलों की मुलाक़ात पर बंदिशें लगाकर
किसी की वफ़ा का सिला देती है
ये किस्मत ही तो है...

Sunday, July 2, 2017
Topic(s) of this poem: love
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5/10/2006 4: 00 PM
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