प्रतीक्षा Poem by Rinku Tiwari

प्रतीक्षा

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कितने दिनों तक मैं सोचता
काश सुबह होती, बारिश
हर सुबह मैं सपना देखता
हो रही है आज बारिश
मैं बारिश के बिन ऐसा
पानी बिन मीन
मेरा यहीं इंतज़ार करता मुझे पागल
टूट गया मेरा धैर्य
कब आयेगा गगन मे बादल
आज मैंने सपना देखा
आकर बादल मुझसे कहता
आ गया बारिश लेकर
आओ आँगन मे उठकर
नाचे, गाये झुम कर
तभी मैं उठ कर देखा
बारिश हो रही हैं
आज मैं खुश हुआ ऐसा
भूखे को मिला भोजन जैसा

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