जिन्दगी अपनी सवारी तो क्या किया तुमने. Poem by KAUSHAL ASTHANA

जिन्दगी अपनी सवारी तो क्या किया तुमने.

जिन्दगी अपनी सवारी तो क्या किया तुमने.
कुछ करो औरो के लिये तो कोई बात बने |

भूल जाओ अतीत की कड़वी यादें.
वर्तमान सवारो तो कोई बात बने |

गुजरता एक - एक लम्हा तुमसे हिसाब मागेगा,
लुटा कर प्यार सब पर मुस्कुराओ तो कोई बात बने |

क्या पता कब स्नेहिल बयार आ जाए,
बंद दरवाजों को खोल दो तो कोई बात बने |

उठों खामोश रहने का वक्त बीत गया,
चलाओ शब्दों का जादू तो कोई बात बने |

सोने वालों को जगाना बड़ी बात नही,
जाग कर सोने वालों को जगाओ तो कोई बात बने |

दुखों से भाग कर कौशल छुपो मत घर के कोने में,
करो डट कर मुक़ाबला तो कोई बात बने |

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