लगता अबकी बार मिलोगे Poem by KAUSHAL ASTHANA

लगता अबकी बार मिलोगे

Rating: 5.0

जन्म-जन्म की पूर्ण प्रतीक्षा
शांत विरह की व्याकुलता
कुछ तो ऐसी बात हो रही
लगता अबकी बार मिलोगे |

धरती नभ का मेल हो रहा
हवा मे अजब की मादकता
दिन बदले बदली सी रातें
लगता अबकी बार मिलोगे |

सूरज में अल्हड़ता आयी
चाँद सितारे मुस्काते
प्रकृति नशे में झूम रही है
लगता अबकी बार मिलोगे |

गायब है ग्रीष्म की तल्ख़ी
सावन की बूँदें स्वाती सी
जाड़ों में मधुमास दिख रहा
लगता अबकी बार मिलोगे |

चारों ओर उछाह उमंगे
हृदय सहज आनंदित मादित
मन ने रोकी सभी उड़ानें
लगता अबकी बार मिलोगे |

छलक रहा अमृत नयनो से
फुल खिले महका गुलशन
प्रेम की अलख जगी कण- कण में
लगता अबकी बार मिलोगे |

...............कौशल अस्थाना

COMMENTS OF THE POEM
Kaushal Asthana 26 January 2014

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