किवाड़ और उसकी दास्तां Poem by Sharad Bhatia

किवाड़ और उसकी दास्तां

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किवाड़ और उसकी दास्तां

किवाड़ जो एक जोड़ी होती है,
उसका एक पल्ला पुरुष और,
दूसरा पल्ला स्त्री होती है।

ये घर की चौखट से जुड़े - जड़े रहते हैं।
हर आवभगत साथ - साथ में खड़े रहते हैं।।
खुद को ये घर का सदस्य मानते हैं।
भीतर बाहर का हर रहस्य जानते हैं।।

यह घर की बुराई को छिपाते हैं।
घर की शोभा को बढ़ाते हैं।।
रहे भले कुछ भी खास नहीं,
पर उससे ज्यादा बतलाते हैं।
इसीलिये घर में जब भी,
कोई शुभ काम होता है।
सब से पहले
किवाड़ ही रँगता हैं।।

पहले नहीं थी,
डोर बेल बजाने की प्रवृति।
किवाड़ ने जीवित रखा था जीवन मूल्य,
संस्कार और अपनी संस्कृति।।

बाऊ जी जब भी आते थे,
कुछ अलग सी साँकल बजाते थे।
आ गये हैं बाऊ जी,
हम सब घर के जान जाते थे ।।
बहुँयें अपने हाथ का,
हर काम यूँही छोड़ देती थी।
उनके आने की आहट पा,
आदर में घूँघट ओढ़ लेती थी।।

अब तो कॉलोनी के किसी भी घर में,
किवाड़ रहे ही नहीं दो पल्ले के।
घर नहीं अब फ्लैट हैं,
और गेट हो गए इक पल्ले के।।
खुलते हैं सिर्फ एक झटके से।
पूरा घर दिखता बेखटके से।।

दो पल्ले के किवाड़ में,
एक पल्ले की आड़ में,
घर की बेटी या नव वधु,
किसी भी आगन्तुक को,
जो वो पूछता बता देती थीं।
अपना चेहरा व शरीर छिपा लेती थीं।।

अब तो धड़ल्ले से खुलता है,
एक पल्ले का किवाड़।
न कोई पर्दा न कोई आड़।।
गंदी नजर, बुरी नीयत, बुरे संस्कार,
सब एक साथ भीतर आते हैं ।
फिर कभी बाहर नहीं जाते हैं।।

कितना बड़ा आ गया है बदलाव?
अच्छे भाव का अभाव।
स्पष्ट दिखता है कुप्रभाव।।

सब हुआ चुपचाप,
बिन किसी हल्ले गुल्ले के।
बदल किये किवाड़,
हर घर के मुहल्ले के।।

अब घरों में दो पल्ले के,
किवाड़ कोई नहीं लगवाता।
एक पल्ला ही अब,
हर घर की शोभा हैं बढ़ाता।।

अपनों में नहीं रहा वो अपनापन।
एकाकी सोच हर एक की है,
एकाकी मन है व स्वार्थी जन।।
अपने आप में हर कोई,
रहना चाहता है मस्त,
बिल्कुल ही इकलल्ला।
इसलिये ही हर घर के किवाड़ में,
दिखता है सिर्फ़ एक ही पल्ला! !

एक प्यारा सा एहसास मेरी नन्ही कलम से
(शरद भाटिया)

किवाड़ और उसकी दास्तां
Friday, August 7, 2020
Topic(s) of this poem: feeling,story
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem is inspired by my friendvarsha Madhulika 's poem " The open door".
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 07 August 2020

इन दो पल्लों के किवाड़ की दास्ताँ से आपने नए और पुराने संस्कारों को जोड़ कर मनुष्य के चरित्र और जीवन काल को एक दार्शनिक रूप दे दिया, बदलते समय के साथ ऐसी कई चीज़ें भी बदली है जिनका badlav agar na hota to achcha hota Dhanyavad,10+

1 0 Reply
Varsha M 07 August 2020

Aabhar aapka is alankrit kavita ke liye. Itni gambhir aur gahri samajh maine na soocha na dekha tha. Bahut aacha laga is jhankar ke liye. Bahut aachi lage ye parivar ki sundarta ke liye. Bahut samay baad etni gahri aur suljhi rachna ko padhi. Aabhar.

1 0 Reply
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