जब अधनिकले से दांतो वाला Poem by Kumar Mohit

जब अधनिकले से दांतो वाला

Rating: 5.0

हृदयाघात से ज्यादा गहरी, चोट दिल को पहुंचता है;
जब अधनिकले से दांतो वाला, बच्चा प्रशन दोहराता है;

मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक, जो चाहूँ कर सकता हूँ;
तुम होते कौन हो कहनेवाले, जैसे चाहूँ रह सकता हूँ;
जब देखो तब कहते रहते, ये नहीं करना, वो नहीं करना;
यँहा ना जाना, वँहा ना जाना,
ये ना खाना, वो ना खाना;
चाहते क्या हो, ये तो बता दो;
क्यों व्यर्थ समस्या पैदा करते?
जब लालन-पालन कर ना सको तो;
क्यूँ व्यर्थ में बच्चे पैदा करते?
बिन कुछ सोचे, बिन कुछ जाने,
मात-पिता पर, बच्चा उंगली उठाता है;
हृदयाघात से ज्यादा ………

अरे समझता क्यों नहीं मूरख,
हमसे तू अलग नहीं ठहरा;
दंभ भर रहा जिस पर इतना,
हमसे मिला तुझे वो चेहरा;
जिस शरीर का ध्यान तू रखता,
है हिस्सा वो हम दोनों का;
और अभिन्न अंग कहलाता है,
पिता का पौरुष, माँ कि ममता,
और भगवान कि माया;
इन तीनों पर प्रश्न उठाकर,
इतना दुःख पहुंचाता है;
जब अधनिकले दांतो वाला ……………………

Saturday, May 3, 2014
Topic(s) of this poem: pain
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