आरज़ू Poem by Kezia Kezia

आरज़ू

Rating: 5.0

ख्वाबों की सीढ़ी पर चढ़कर

चाँद को लटका आया हूँ

तुम्हारी खिड़की पर

ज़रा झाँककर तो देखो

आसमान से टपकने वाला होगा

शायद गिर जाएगा

तुम्हारे ही आँगन में

हथेलियाँ खोलकर रखना

कहीं कोई और न लपक ले जाए

कोई और ले गया तो

शिकायत न करना

कि एक आरज़ू थी

वही अधूरी रही

***

Thursday, August 20, 2020
Topic(s) of this poem: complain,moon
COMMENTS OF THE POEM
Sharad Bhatia 20 August 2020

इस आरजू के साथ जी रही हूँ अगर मिल जाये तुम्हारा थोड़ा सा साथ जीवन मेरा सँवर जाये फिर बन फूल तुम्हारे आँगन मे बिखर जाऊँगी चारो तरफ खुशबू फैला जाऊँगी Rated 10++

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M Asim Nehal 20 August 2020

Wah wah.... मै जानता हूँ, किसी के हाथ नहीं आएगा " ये चाँद का टुकड़ा " ये आरज़ू अधूरी ही रहेगी. बहुत उम्दा आरज़ू जगा दी आपने, धन्यवाद 10++++

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