मना कर तो देखो Poem by KAUSHAL ASTHANA

मना कर तो देखो

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मिला रूठ कर क्या मना कर तो देखो |
सहज हो प्रिये मुस्करा कर तो देखो ||

भयानक अंधेरों में कब तक जियोगे |
अतीत जो दुःख दे भुला कर तो देखो ||

खयालो में रह हर समय दौड़ता मन |
उसे थोड़ा अंकुश लगा कर तो देखो ||

परायो को अपना बनाते रहे हो |
अपनो को अपना बना कर तो देखो ||

बहुत दिन हुए गीत होठों पे आये |
कभी गीत संग गुनगुना कर तो देखो ||

नही पाया कुछ गर्व से सर उठाकर |
कभी शांति से सर झुकाकर तो देखो ||

रहेगे नही कोई शिकवे गिले फिर |
कभी दिल से दिल को मिला कर तो देखो ||

दिलों कि क्या भाषा, नयन जानते है |
झुकाओ नयन मत, मिला कर तो देखो ||

.............................. कौशल अस्थाना

Wednesday, July 9, 2014
Topic(s) of this poem: love
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KAUSHAL ASTHANA

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