हार गए Poem by Lalit Kaira

हार गए

हम एक जिंदगी हार गए
ना डूबे ना उस पार गए
हम अपनी धुन में रहते थे
ना सुनते थे बस कहते थे
अब एक चमन को तरसे हैं
तब ठुकराते संसार गए
हम एक जिंदगी हार गए
दो चार ठोकरों ने हमको
ग्यान दिया मेटा तम को
हारे हुए खिलाड़ी से हम
उठ कर कितनी बार गए
हम एक जिंदगी हार गए
क्या जीवन की परिभाषा है
क्या आशा और निराशा है
जग में केवल छल मिलता पर
हम सदा बाँटते प्यार गए
हम भले जिंदगी हार गए
जो हम पर जान छिड़कते थे
हम उनसे कटते फिरते थे
हँस कर जिनसे गले मिले
वो पीठ में खंजर मार गए
अब लड़ना और झगड़ना क्या
झुकना पैर पकड़ना क्या
वो आगे से मुस्काए, पर
पीछे से खंजर मार गए
हम नासमझी में अच्छे थे
भोले थे लेकिन सच्चे थे
अब दादी को बतलाएँ क्या?
बदल सभी अशआर गए
ना डूबे ना उस पार गए
हम एक जिंदगी हार गए

Wednesday, July 16, 2014
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM

Another beautiful gem.....Kya jevan ki paribhasha hai, Kya asha aur nirasha hai

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
Close
Error Success