रो चुका हूँ Poem by KAUSHAL ASTHANA

रो चुका हूँ

कभी आते न आँसू रो चुका हूँ
कलुष मन में भरा जो धो चुका हूँ |
बड़ा उद्विग्न पर विचलित न पथ से
दुखों का बोझ सर पर ढो चुका हूँ |
गँवाने के लिए अब कुछ नही है
यहां जो था सभी कुछ खो चुका हूँ |
बनो चाहे कभी भी तुम न मेरे
तुम्हारा मै हृदय से हो चुका हूँ |
नही लगता मुझे अब मृत्यु से भय
प्रिया वह् साथ उसके सो चुका हूँ |
नही अब चाह कोई इस धरा पर
यहां मै प्रेम पौधा बो चुका हूँ |


..............कौशल अस्थाना

Tuesday, August 26, 2014
Topic(s) of this poem: sad
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