सोती हुई तू और तेरी सौंंदर्य Poem by Tulsi Shrestha

सोती हुई तू और तेरी सौंंदर्य

सोती हुई तू और तेरी सौंंदर्य
तुझे बडबडाते सुनकर, मैं जागाआधा रात को
शायद मेरा नाम लेकर, तू ने नींद की आगोश में
प्यार का इकरार कि होगी ।
टटोलने लगी तू मुझे, समिप सोते हुये जगह पर ।
तेरी खुशबू भरी सांसों से, छाने लगा मदहाेशी मुझमे ।
चाँदनी की रोशनी से, भीगा तेरी बदन ।
निर्मल, निश्छल, मासूम चेहरा ।
तुझे छुने को ललचाय ये मेरा मन ।
बडा हुआ मेरा हाथ, खीचा वापस मैंने
कही तू नींद से न जागे ।
थामके दिल अपना, निहारने लगा मैं
खिलता हुआ कली की अनुपम सौंदर्य ।
तेरी प्यार मैं ऐसे डूबा, मदहोश होके खुड को भूला ।
' छोड के मत जा य मेरी साजन 'तू नींद में रोती हूई बोली ।
सुनकर तेरी इकरार निश्छल प्यार का
अनयास, मेरे आँखों से आँसू टपकने लगा गालों पर ।
ना सो के मैं, सारे रात सोती हुई तू और तेरी
अनुपम खूबसूरती को निहारता रहा ।
पता भी ना चला, कब रात बितकर सुबह हुई ।
जब सूरज की किरणों ने,
खिडकी से झाककर तुझे चुमा ।
मे जागा, अनायाश, प्यार के नींद से ।
ना छुते हुये तेरी यौवन को
जो अनुपम प्यार कि एहसास मुझे हुआ ।
क्या यहीं शाशत्वअमर प्रेम हैं....?
जब तू मिली मुझे, मंजिल बनकर
सागर के गहराइ मुझमे समागया
सौगात बनकर तेरी प्यारका ।

रचानाकार ः- तुल्सी श्रेष्ठ

Saturday, June 17, 2017
Topic(s) of this poem: beautiful,love
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