सोती हुई तू और तेरी सौंंदर्य
तुझे बडबडाते सुनकर, मैं जागाआधा रात को
शायद मेरा नाम लेकर, तू ने नींद की आगोश में
प्यार का इकरार कि होगी ।
टटोलने लगी तू मुझे, समिप सोते हुये जगह पर ।
तेरी खुशबू भरी सांसों से, छाने लगा मदहाेशी मुझमे ।
चाँदनी की रोशनी से, भीगा तेरी बदन ।
निर्मल, निश्छल, मासूम चेहरा ।
तुझे छुने को ललचाय ये मेरा मन ।
बडा हुआ मेरा हाथ, खीचा वापस मैंने
कही तू नींद से न जागे ।
थामके दिल अपना, निहारने लगा मैं
खिलता हुआ कली की अनुपम सौंदर्य ।
तेरी प्यार मैं ऐसे डूबा, मदहोश होके खुड को भूला ।
' छोड के मत जा य मेरी साजन 'तू नींद में रोती हूई बोली ।
सुनकर तेरी इकरार निश्छल प्यार का
अनयास, मेरे आँखों से आँसू टपकने लगा गालों पर ।
ना सो के मैं, सारे रात सोती हुई तू और तेरी
अनुपम खूबसूरती को निहारता रहा ।
पता भी ना चला, कब रात बितकर सुबह हुई ।
जब सूरज की किरणों ने,
खिडकी से झाककर तुझे चुमा ।
मे जागा, अनायाश, प्यार के नींद से ।
ना छुते हुये तेरी यौवन को
जो अनुपम प्यार कि एहसास मुझे हुआ ।
क्या यहीं शाशत्वअमर प्रेम हैं....?
जब तू मिली मुझे, मंजिल बनकर
सागर के गहराइ मुझमे समागया
सौगात बनकर तेरी प्यारका ।
रचानाकार ः- तुल्सी श्रेष्ठ
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