वक़्त Poem by Vaishnavi Singh

वक़्त

दुख के बादल हुए घने,
आँसुओं की बरसात है,
जीवन अंधेरा-सा बने,
पर वक़्त चलता ही रहे.

खुशियों का उजाला उगे,
मुस्कान का है मौसम,
जीवन नवकिरण-सा लगे,
पर वक़्त चलता ही रहे.

न हो दुखों का धन,
न मिले सुख का दान,
वे तो क्षण-भर मेहमान रहते,
क्योंकि वक़्त है महा बलवान.

छाए अगर निराशा का कहर,
या बढ़े खुशी का अभिमान,
वक़्त नहीं ठहरता एक भी पहर,
उसका है यह स्वाभिमान.

Monday, September 15, 2014
Topic(s) of this poem: time
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This is my first hindi poem. I wrote it for my school's hindi poetry competition. Comments and corrections are always welcome.
COMMENTS OF THE POEM
Ajay Srivastava 23 May 2015

वहीं हमेशा आपके साथ कभी भी आप को धोका नहीं देगा ताजगी का एहसास भी दिलाता है । यह सब खूबी होने के बाबजूद कोई इसकी कदर नहीं करता बाद में ऐसी को दोष देते है । बड़े ही सहज भाव से कह देते है बुरा बना देते है कहते है वक्त ख़राब है।

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Ajay Srivastava 23 May 2015

वक्त वहीं हमेशा आपके साथ कभी भी आप को धोका नहीं देगा ताजगी का एहसास भी दिलाता है । यह सब खूबी होने के बाबजूद कोई इसकी कदर नहीं करता बाद में ऐसी को दोष देते है । बड़े ही सहज भाव से कह देते है बुरा बना देते है कहते है वक्त ख़राब है।

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Aftab Alam Khursheed 15 September 2014

waqt ek achchhii kavitaa hai aise aaj main bhii hindii me likhaa hai

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