यूँ अब तो हार में भी बस, मैं अपनी जीत पाता हूँ Poem by Abhishek Omprakash Mishra

यूँ अब तो हार में भी बस, मैं अपनी जीत पाता हूँ

यूँ अब तो हार में भी बस, मैं अपनी जीत पाता हूँ
चलूँ जिस राह पर रहबर, यही बस गीत गाता हूँ
ज़रा सी बेरुखी हम पर, सनम कायम किये रखना
फ़क़त मैं तेरी बेरुखी में भी, तुम्हारी प्रीत पाता हूँ

Wednesday, December 24, 2014
Topic(s) of this poem: love and pain
COMMENTS OF THE POEM
Tabish Raza 24 December 2014

short but beautifully penned. keep it up! good luck.

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