गीतकार हूँ मै Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

गीतकार हूँ मै

गीतकार हूँ मैं
सपने मेरे सपने, पराए कुछ अपने
छोटी छोटी बातों को, सीने से लगाता हूँ मैं
मेरा भरम यही मेरा करम, मेरा करम मेरा धरम

ठोकर खाकर सिखता हूँ मैं
दो टुक बाते लिखता हूँ मैं
मेरी मरज़ी का मैं मालिक
मेरे जैसा दिखता हूँ मैं
बस में मेरे बस में, नही हैं सारी रस्में
छोटी छोटी बातों को, सिने से लगाता हूँ मैं

मेरा कोयी नाम नही हैं
मेरा कोयी काम नही हैं
गीत मेरे मित जैसे
कुछ भी पूकारो मना नहीं हैं
हक में मेरे हक में, गुनगुनाता हूँ बस मैं
छोटी छोटी बातों को, सीने से लगाता हूँ मैं

जीवन ज्योति जलती रहेगी
दुनियादारी चलती रहेगी
मैं ना रहूँगा इस दुनिया में
लेकिन मेरी अर्जी रहेगी
कसमें मेरी कसमें, क्या पता क्या हैं सच में
छोटी छोटी बातों को, सिने से लगाता हूँ मैं

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Monday, December 29, 2014
Topic(s) of this poem: art
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